हिंदी भाषा की स्थिति- भूत, वर्तमान और भविष्य
" निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल।" यह पंक्तियां है नवजागरण कालीन साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की ,जिसमें भाषा की महत्ता को लक्षित किया गया है ।भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है ,वह अपने अंदर जन भावनाओं को समाहित कर अपनी विकास यात्रा पूर्ण करती है ।हिंदी भाषा ने भी स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद अनेक सोपानों का सफर तय किया है ।आज हिंदी ,चीनी के बाद विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है ।किंतु इस यशस्वी यात्रा में हिंदी ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और कर रही है । सन 2001 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 भाषा परिवारों की 234 मातृभाषाएं 100 वर्गीकृत भाषाएं और 10 लिपियां है ।ऐसे बहुभाषिक देश में किसी ऐसी एक भाषा का चयन बहुत कठिन है जिसकी पहचान सत्ता के नियामक तंत्र से जुड़ी हो ।जब स्वतंत्रता आंदोलन के समय किसी एक भारतीय भाषा को स्वीकारने पर विचार-विमर्श किया गया तो सर्वसम्मति से हिंदी राष्ट्रीय अस्मिता की भाषा के रूप में उभर कर सामने आई । स्वतंत्रता स...