हिंदी भाषा की स्थिति- भूत, वर्तमान और भविष्य
"निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूलबिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल।"
यह पंक्तियां है नवजागरण कालीन साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की ,जिसमें भाषा की महत्ता को लक्षित किया गया है ।भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है ,वह अपने अंदर जन भावनाओं को समाहित कर अपनी विकास यात्रा पूर्ण करती है ।हिंदी भाषा ने भी स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद अनेक सोपानों का सफर तय किया है ।आज हिंदी ,चीनी के बाद विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है ।किंतु इस यशस्वी यात्रा में हिंदी ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और कर रही है ।
सन 2001 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 भाषा परिवारों की 234 मातृभाषाएं 100 वर्गीकृत भाषाएं और 10 लिपियां है ।ऐसे बहुभाषिक देश में किसी ऐसी एक भाषा का चयन बहुत कठिन है जिसकी पहचान सत्ता के नियामक तंत्र से जुड़ी हो ।जब स्वतंत्रता आंदोलन के समय किसी एक भारतीय भाषा को स्वीकारने पर विचार-विमर्श किया गया तो सर्वसम्मति से हिंदी राष्ट्रीय अस्मिता की भाषा के रूप में उभर कर सामने आई ।
इस प्रकार हिंदी पहले संपर्क भाषा और फिर संपूर्ण राष्ट्र की भाषा के रूप में विकसित हुई और स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दी ।
रोचक तथ्य यह है कि यह प्रस्ताव भी एक हिंदतर क्षेत्र के मनीषी श्री गोपाल स्वामी आयंगर ने ही रखा था ।
1967 के बाद स्थिति में परिवर्तन हुआ और बिहार और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में अंग्रेजी को कक्षा 1 से 5 तक के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया । यह राज्य अंग्रेजी से पूरी तरह अछूते रह गए। 1987 के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण एक बार फिर अंग्रेज़ी भाषा को बल मिला और बहुत से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए । इस प्रकार हिंदी का संघर्ष जारी रहा ।
संसार में ऐसे अनेक देश हैं जिन्होंने अपनी भाषा के प्रति सम्मान की दृष्टि रखते हुए विकास किया है और अंग्रेजी के प्रयोग के साथ ही अपने देश की भाषा को काम काज की भाषा बनाय रखा । अपनी भाषा से प्रेम का यह अर्थ भी कदापि नहीं है कि अन्य भाषाओं के प्रति द्रोह रखा जाए । अपनी राष्ट्रीय भाषा के साथ साथ ऐसी भाषा को भी समर्थन देना आवश्यक है जो रोजगार में सहायक हो और विदेशों में भी पहचान बनाने में सहायक हो ।
सच तो यह है कि आज हिंदी की पहुंच बहुत तेजी से बढ़ रही है देश में सर्वाधिक समाचार और मनोरंजन चैनल हिंदी के ही हैं । हिंदी फिल्मों और सीरियलों की लोकप्रियता अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी को पहचान दिला रही है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक , टि्वटर ,इंस्टाग्राम आदि के द्वारा हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है सबसे बड़ी बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री आज अंतर्राष्ट्रीय मंच से हिंदी में ही भाषण देते हैं , जिसने विदेशों में भी हिंदी के पद को ऊंचा किया है ।
तात्पर्य यह है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद हिंदी के विकास की अनेक संभावनाएं तेजी से विकसित हो रही हैं ।
सन 2001 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 भाषा परिवारों की 234 मातृभाषाएं 100 वर्गीकृत भाषाएं और 10 लिपियां है ।ऐसे बहुभाषिक देश में किसी ऐसी एक भाषा का चयन बहुत कठिन है जिसकी पहचान सत्ता के नियामक तंत्र से जुड़ी हो ।जब स्वतंत्रता आंदोलन के समय किसी एक भारतीय भाषा को स्वीकारने पर विचार-विमर्श किया गया तो सर्वसम्मति से हिंदी राष्ट्रीय अस्मिता की भाषा के रूप में उभर कर सामने आई ।
स्वतंत्रता से पहले हिंदी
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद राष्ट्रभाषा का प्रश्न बलवती हो गया। भारत में अंग्रेज़ो के शासन के समय राजकाज की भाषा अंग्रेजी थी तो दूसरी ओर खड़ी बोली की उर्दू शैली भी प्रसिद्ध थी । ऐसे समय में भावात्मक एकता के लिए अपनी सरलता और सक्रियता के कारण हिंदी ने अखिल भारतीय संपर्क भाषा की ऐतिहासिक आवश्यकता को पूरा किया ।
हिंदी भाषा की चेतना के विकास में प्रारंभिक पत्र-पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसमें कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन ,बालबोधिनी तथा आज ,सुधाकर , प्रताप ,सरस्वती आदि सम्मिलित हैं ।पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही हिंदी के विकास में कतिपय संस्थाओं नेें भी योगदान दिया इन संस्थाओं में नागरी प्रचारिणी सभा , हिंदी साहित्य सम्मेलन , हिंदी प्रचार सभा और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा का नाम उल्लेखनीय है । महात्मा गांधी ने हिंदी को स्वराज का प्रश्न बताया । हिंदी भाषा के विकास में केवल हिंदी भाषी विचारको ने ही नहीं अपितु हिंदीतर क्षेत्र के मनीषियों ने भी अपना योगदान दिया है । इनमें श्री अरविंद ,आचार्य क्षितीमोहन सेन ,डॉक्टर सुनीति कुमार चटर्जी ,रविंद्रनाथ ठाकुर आदि प्रमुख है ।इस प्रकार हिंदी पहले संपर्क भाषा और फिर संपूर्ण राष्ट्र की भाषा के रूप में विकसित हुई और स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दी ।
रोचक तथ्य यह है कि यह प्रस्ताव भी एक हिंदतर क्षेत्र के मनीषी श्री गोपाल स्वामी आयंगर ने ही रखा था ।
स्वतंत्रता के बाद हिंदी
स्वतंत्रता के बाद हिंदी का विकास तो हुआ किंतु हिंदी के उस रूप का ध्यान नहीं रखा गया जिस रूप का स्वभावता आजादी की लड़ाई के दौरान व्यापक भारतीयों द्वारा प्रयोग हुआ था या जिस हिंदी का प्रयोग गांधी जैसे राष्ट्र नायक एवं भारतेंदु और प्रेमचंद जैसे रचनाकारों तथा विचारकों ने किया था इसका बड़ा कारण है अंग्रेजी के प्रति लोगों का लगाओ स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों की मुखालफत तो हुई किंतु अंग्रेजी की नहीं । महात्मा गांधी , नेहरू ,अंबेडकर आदि नेताओं ने अंग्रेजों की मुखालफत की अंग्रेजी की कभी नहीं की । वे हिंदी से प्रेम तो करते थे किंतु अंग्रेजी से घृणा नहीं करते थे ।इसीलिए स्वतंत्रता के बाद अधिकांश समाज वैज्ञानिकों इतिहासकारों और वैज्ञानिकों ने अपनी मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी में लेखन कार्य किया और हिंदी, अंग्रेजी के मुकाबले पिछड़ने लगी ।1967 के बाद स्थिति में परिवर्तन हुआ और बिहार और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में अंग्रेजी को कक्षा 1 से 5 तक के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया । यह राज्य अंग्रेजी से पूरी तरह अछूते रह गए। 1987 के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण एक बार फिर अंग्रेज़ी भाषा को बल मिला और बहुत से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए । इस प्रकार हिंदी का संघर्ष जारी रहा ।
संसार में ऐसे अनेक देश हैं जिन्होंने अपनी भाषा के प्रति सम्मान की दृष्टि रखते हुए विकास किया है और अंग्रेजी के प्रयोग के साथ ही अपने देश की भाषा को काम काज की भाषा बनाय रखा । अपनी भाषा से प्रेम का यह अर्थ भी कदापि नहीं है कि अन्य भाषाओं के प्रति द्रोह रखा जाए । अपनी राष्ट्रीय भाषा के साथ साथ ऐसी भाषा को भी समर्थन देना आवश्यक है जो रोजगार में सहायक हो और विदेशों में भी पहचान बनाने में सहायक हो ।
सच तो यह है कि आज हिंदी की पहुंच बहुत तेजी से बढ़ रही है देश में सर्वाधिक समाचार और मनोरंजन चैनल हिंदी के ही हैं । हिंदी फिल्मों और सीरियलों की लोकप्रियता अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी को पहचान दिला रही है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक , टि्वटर ,इंस्टाग्राम आदि के द्वारा हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है सबसे बड़ी बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री आज अंतर्राष्ट्रीय मंच से हिंदी में ही भाषण देते हैं , जिसने विदेशों में भी हिंदी के पद को ऊंचा किया है ।
तात्पर्य यह है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद हिंदी के विकास की अनेक संभावनाएं तेजी से विकसित हो रही हैं ।
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