शिक्षा में समावेशन प्रणाली और विद्यालय प्रबंधन समिति की भूमिका


"शिक्षा में समावेशी करण का अर्थ है विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक अशक्त या दिव्यांग छात्र को समान शिक्षा प्राप्ति का अवसर प्रदान करना और सीखने तथा सिखाने की प्रणाली में इस प्रकार अनुकूलन किया जाना ,कि विभिन्न प्रकार की दिव्यांगता वाले विद्यार्थियों की अधिकतमआवश्यकताएं पूरी की जा सकें ।" 
वास्तव में समावेशी शिक्षा या एकीकरण के सिद्धांत की ऐतिहासिक जड़े कनाडा और अमेरिका से जुड़ी है । जो अब भारत में भी सिर उठाने लगी है अब जब प्राचीन शिक्षा नीति का स्थान नई शिक्षा नीति नें ले लिया है तब समावेशी शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव होने लगा है।  यह शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करती तथा अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग करना नहीं मानती । इन बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है जिससे वह समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें । इसके तहत स्कूलों  में पठन-पाठन के अतिरिक्त दिव्यांग बच्चों के लिए बाधा रहित वातावरण का निर्माण किया जाता है शिक्षा की इस नवीन प्रणाली से हाशिए पर के वे बच्चे लाभान्वित होते हैं जिन्हें अपनी दिनचर्या से लेकर पढ़ाई पूरी करने तक विशेष देखभाल की आवश्यकता पड़ती है । विशेष आवश्यकता वाले बच्चे सामान्यतः दृष्टि , श्रवण एवं अधिगम अक्षमता के साथ-साथ मानसिक मंदता से भी ग्रस्त होते हैं उन्हें सामान्य बच्चों के साथ समायोजित होने में काफी कठिनाई होती है।  माता-पिता की सोच भी इन बच्चों के प्रति सकारात्मक नहीं होती है जिस कारण वे सदैव हीन भावना से ग्रसित रहते हैं और अपने को समाज से कटा हुआ महसूस करते हैं । परिणाम स्वरुप उनकी शिक्षा भी पूर्ण नहीं हो पाती । अतः ऐसे बच्चों का शिक्षा में समावेशन अति आवश्यक है।
समावेशी शिक्षा शारीरिक, मानसिक ,प्रतिभाशाली तथा विशिष्ट गुणों से युक्त विभिन्न बालको पर अपनाई जाती है । यह एक ऐसी शिक्षा पद्धति है जो तय करती है कि प्रत्येक छात्र को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और इसमें उनकी योग्यता ,शारीरिक अक्षमता, भाषा ,संस्कृति ,पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा आयु किसी प्रकार का अवरोध पैदा न कर सके। आज ब्रिटेन तथा अमेरिका जैसे कुछ विकसित देशों में इस प्रकार की शिक्षण संस्थाएं आवासीय विद्यालयों के रूप में कार्यरत हैं ,लेकिन भारत में इस प्रकार की संस्थाओं का अभी तक आभाव ही है जबकि "निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में सुविधा वंचित समूहों जैसे अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग या सूचीबद्ध दिव्यांग बच्चों सहित सभी बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रावधान है। "तथा "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 एवं योजना क्रियान्वयन 1982 में सभी बच्चों के साथ-साथ दिव्यांग बच्चों के लिए विद्यालयी शिक्षा की सुलभता, अधिगमलब्धियों में उन्नयन और शाला त्याग दर में कमी लाने पर बल दिया गया है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा संबंधी सलामान्का प्रपत्र व  क्रियान्वयन की  रूपरेखा, 1994 बिवाको मिलेनियम क्रियान्वयन की रूपरेखा ,2002 और दिव्यांग जनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 2006 ,जैसे अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्रों का भारत हस्ताक्षरी रहा है जिसमें दिव्यांग बच्चों के सामान्य विद्यालयों में समावेशन से संबंधित शिक्षा नीति की आवश्यकता प्रस्तावित है । विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा पर राष्ट्रीय फोकस समूह का आधार पत्र 2006 में ,दिव्यांग एवं अन्य विद्यार्थियों की विविधताओं के समायोजन के अनुरूप लचीलापन लाने की अनुशंसा की गई है। सामान्य विद्यालयों में दिव्यांग बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने हेतु दिव्यांग बच्चों के लिए केंद्र प्रायोजित एकीकृत शिक्षा योजना (संशोधित 1992)  में चलाई गई थी । सर्व शिक्षा अभियान तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के द्वारा सामान्य विद्यालयों में दिव्यांग एवं अन्य शिक्षा वंचित समूहों के बच्चों के समावेशन हेतु सहायता प्रदान की गई और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 निष्पक्ष और भेदभाव रहित शिक्षा के सिद्धांतों के आधार पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सम्यक अधिकार प्रदान करता है समग्र शिक्षा अभियान 2018 में विद्यालय पूर्व शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ निष्पक्षता एवं समावेशन सुनिश्चित करने की भी परिकल्पना की गई है"1
            किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी दिव्यांग बच्चे विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग दिखाई देते हैं। सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर उनके विकास के लिए किए जाने वाले अनेक प्रयासों के बावजूद भी इनकी स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं है ,और आज भी यह विशेष आवश्यकता वाले अधिकांश बच्चे समाज की मुख्यधारा से दूर हैं। शिक्षा विकास का एक मुख्य मापदंड है इसीलिए यदि इन दिव्यांगों की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया जाए तो इन्हें समाज में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ।
         साधारणतया समावेशी कक्षा में छात्रों का निर्धारण उनकी आयु के अनुसार किया जाता है वह चाहे अकादमिक रूप से ऊंचा या नीचा स्तर रखते हों ।शिक्षकों को उनके साथ एक जैसा बर्ताव करना पड़ता है ।और उनकी अंतर्निहित सही क्षमता को साकार करने का पर्याप्त अवसर दिया जाता है। इसमें स्कूल के भीतर ऐसी शिक्षा पद्धतियों का उपयोग किया जाता है जिनमें प्रत्येक बच्चे चाहे उनकी जाति ,वर्ग ,विशिष्ट संस्कृति ,लिंग तथा योग्यता में अंतर हो, सभी की जरूरतों का समुचित ध्यान रखा जाए । 
         वास्तव में समावेशी शिक्षा की नीति मित्रता पूर्ण, प्रभावशाली और अलग-अलग क्षमता वाले बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली प्रतीत होती है किंतु इसकी जमीनी हकीकत (वास्तविकता) कुछ और ही है जो चिंताजनक है । प्रायः देखा  जाता है कि संसाधनों के पर्याप्त सहारे के बिना सभी बच्चों पर शिक्षक पूर्ण रुप से ध्यान नहीं दे पाते और यह बच्चे स्कूलों में अलग-अलग समूहों में सीमित हो जाते हैं।  पूर्व एकीकरण कार्यक्रमों के अभाव में नियमित स्कूलों में पढ़ने वाले इन दिव्यांग बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गई है  इस औपचारिकता को वास्तविकता में बदलने के लिए अब( एनसीईआरटी ) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा प्रयास आरंभ किए गए हैं । 
       निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में प्रारंभिक शिक्षा में समावेशन तथा समता के सिद्धांतों पर आधारित जिस भेदभाव रहित शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया गया है उसमें "विद्यालय प्रबंधन समिति "की सक्रिय भागीदारी की कल्पना की गई है । इस समिति में तीन चौथाई सदस्य विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के माता-पिता /अभिभावक होते हैं, आधी सदस्य महिलाएं होती हैं। और सुविधा वंचित समूहों का भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व होता है। इस समिति के सदस्यों को गुणवत्तापूर्ण भेदभाव रहित शिक्षा के सिद्धांतों पर आधारित विद्यालयी गतिविधियों से अवगत कराया जाता है।  जिसमें वह शिक्षण संबंधी नीतियों, योजनाओं व लक्ष्यों को विद्यालय स्तर पर लागू कर सकें।  इस संस्था की मुख्य विशेषता यह है कि इसके द्वारा छात्रों के माता-पिता व अभिभावकों को भी कुछ अधिकार दिए गए हैं जिसके अंतर्गत विद्यालय के कार्यो की देखरेख , विद्यालय विकास योजना का निर्माण , उनका क्रियान्वयन, पर्यवेक्षण,  मूल्यांकन ,अनुदानो का सही प्रयोग और अन्य विद्यालयी कार्य आते हैं । विद्यालय प्रबंधन समिति विद्यालय की प्रभावी एवं गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार संस्था है । यह संस्था विद्यार्थी, विद्यालय एवं समुदाय के बीच एक सामंजस्य स्थापित करती है जिससे विद्यार्थियों को विद्यालयों तथा परिवार दोनों में शैक्षिक वातावरण प्राप्त हो सके और समाज भी उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न ना कर सके ।
विद्यालय प्रबंधन समिति की संरचना-निशुल्क और बाल शिक्षा का अधिकार 2009 के अध्याय 4 खंड 21 (1 ) और (2 )तथा 22 (1)और (2)  के अनुसार सहायता प्राप्त विद्यालयों में विद्यालय प्रबंधन समिति के गठन का प्रावधान किया गया है।जिसका पुनर्गठन प्रत्येक 2 वर्ष में अपेक्षित है। विद्यालय प्रबंधन समिति की संरचना में समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। जिससे यह संस्था सुचारू रूप से अपना कार्य पूर्ण कर सके ।
अधिनियम में इसकी संरचना के निम्न प्रावधान दिए गए है।
इस समिति के कम से कम तीन चौथाई सदस्य विद्यार्थियों के माता-पिता या संरक्षक होंगे।
असुविधा ग्रस्त समूह और दुर्बल वर्ग के बालकों के माता-पिता या संरक्षकों को समानुपाति प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
वि. प्र.स.की 50% सदस्य महिलाएं होंगी।
शेष 25% सदस्यों में से एक तिहाई का निर्णय स्थानीय निकाय द्वारा तय  स्थानीय प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा । दूसरे एक तिहाई सदस्यों का चयन विद्यालय के शिक्षकों में से किया जाएगा । शेष एक तिहाई सदस्य माता-पिता द्वारा तय किए जाने वाले विद्यालय के शिक्षाविदों या विद्यार्थियों में से होना चाहिए।
।विद्यालय के मुख्य शिक्षक भी विद्यालय प्रबंधन समिति के संयोजक होंगे।
वि.प्र.स. द्वारा विभिन्न कार्यों की आवश्यकता के अनुसार उप-समितियां भी गठित की जा सकती हैं।
विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन 2 वर्ष की अवधि के लिए किया जाएगा 2 वर्ष के बाद पुनर्गठन किया जाएगा ।
वि.प्र.स.  द्वारा माह में कम से कम एक बार बैठक की जानी चाहिए ।बैठक के कार्यवृत्त और निर्णयों को उचित तरीके से लिखा जाना चाहिए और सभी को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। बैठक के विचारणीय विषयों की सूची ,बैठक के दिन व समय की लिखित और मौखिक सूचना बैठक से कम से कम 3 दिन पहले सभी सदस्यों को दी जानी चाहिए।
शिक्षा समावेशन में विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों की भूमिका- विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों का विद्यालय की गतिविधियों में विशेष योगदान होता है। साथ ही कुछ कर्तव्य भी होते हैं ,जिनका निर्वहन करना समिति के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है जिसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
( 1)।       समिति को विद्यालय तथा विद्यार्थियों से संबंधित समस्याओं का पता लगाकर उनके समाधान की योजना तैयार करना होता है ।इसके लिए 3 वर्षीय" विद्यालय विकास योजना "तैयार की जाती है । जिसमें निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए । 
(क)     कक्षा वार अनुमानित नामांकन  (ख)   कक्षा 1 से 5 तथा  6 से 8 की कक्षाओं के लिए अतिरिक्त शिक्षकों की व्यवस्था करना।    (ग)    शिक्षकों का विशेष प्रशिक्षण । (घ)  विद्यार्थियों के लिए शिक्षा अधिगम सामग्री एवं वि. वि. यो के लिए वित्तीय आवश्यकताएं । मूल संरचनात्मक सुविधाओं और उपकरणो की आवश्यकता आदि को पूरा करना ।
 (2)।     विद्यार्थियों के लिए विद्यालय में ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे वे  निर्बाध रूप से शिक्षा ग्रहण कर सकें और उनके जीवन में अवसरों की कोई कमी ना रहे।
 (3 )   विद्यालय प्रबंधन समिति  के सदस्यों में समुदाय तथा माता-पिता की भी भागीदारी होती है । जिसके कारण विद्यालय की गतिविधियों में उन्हें रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए ,क्योंकि समावेशी शिक्षा के लिए समाज और समुदाय का सहयोग जरूरी है । जो समावेशी समाज के लिए विद्यार्थियों को तैयार करता है।
(4 )     विद्यालय प्रबंधन समिति का एक मुख्य कार्य 6 से 14 वर्ष के ऐसे सभी बच्चों की पहचान कर उन्हें विद्यालय आने के लिए प्रेरित करना है जो किसी व्यक्तिगत ,सामाजिक, आर्थिक ,भौतिक ,या मनोवैज्ञानिक स्थितियों के कारण विद्यालय नहीं जाते या बीच में ही छोड़ देते हैं।
(5 )      विद्यार्थियों की मूलभूत सुविधाओं की  उपलब्धता पर ध्यान देना भी विद्यालय प्रबंधन समिति की जिम्मेदारी है जिसके अंतर्गत शिक्षण के लिए पर्याप्त कक्षाएं और शिक्षण सामग्री, खेल सामग्री तथा खेलने के अवसर प्रदान करना ,छात्र /छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था ।पीने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था । गुणवत्तापूर्ण मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था आदि।
(6 )      विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देना और मानसिक उत्पीड़न करना निषेध है । अतः विद्यालय प्रबंधन समिति को विद्यालय में ऐसी व्यवस्था करना  चाहिए जहां शिक्षकों द्वारा छात्रों का शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार का उत्पीड़न ना किया जाए और वह विद्यार्थियों से बहुत सख्ती से पेश  न आएं । उनके अधिगम तथा व्यवहार संबंधी समस्याओं का मार्गदर्शन कर उनके साथ सहयोग करें । विद्यालय में भेदभाव पूर्ण स्थिति होने पर छात्रों को प्रेरित करें कि वह विद्यालय प्रबंधन समिति को इस स्थिति से अवगत कराएं, जिससे समस्या का समाधान किया जा सके।
(7)         विद्यालय प्रबंधन समिति विद्यालय को प्राप्त समस्त धन राशियों और उनके व्यय का वार्षिक लेखा-जोखा तैयार कर उसको एक माह के अंदर स्थानीय प्राधिकरण को उपलब्ध कराएगी।
(8 )        विद्यालय की गुणवत्ता की जांच के लिए समिति के सदस्यों द्वारा समय-समय पर सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कक्षाएं नियमित रूप से चल रही है ।  किसी विद्यार्थी के साथ जाति, लिंग, रंग ,माता-पिता की सामाजिक ,आर्थिक स्थिति या दिव्यांगता के कारण भेदभाव ना हो । शिक्षा तथा मूल्यांकन बच्चे के अनुकूल हो । बच्चों के माता-पिता के साथ मासिक बैठक कर उनकी प्रगति या अन्य विषयों के बारे में माता-पिता को अवगत कराया जाए।
(9)        विद्यार्थियों की स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी जानकारी प्राप्त करना तथा विद्यालय में उन्हें स्वस्थ वातावरण देना भी विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों के ज्ञान का विषय है । जिसके लिए वह एक उप समिति गठित कर सकते हैं । जिसका कार्य माता-पिता तथा समुदाय को विद्यालय के स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देना हो तथा सभी विद्यार्थियों को स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किया जाए और समय-समय पर उनके स्वास्थ्य की जांच की जाए।
(10 )      विद्यालय प्रबंधन समिति शिक्षकों ,विद्यार्थियों ,माता-पिता तथा समुदाय के सदस्यों की विद्यालय से संबंधित शिकायतें भी सुन सकती है और विभागीय अधिकारियों से संपर्क कर समस्याओं का समाधान कर सकती है।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं  कि किसी कार्य को सफलतापूर्वक , वह प्रभाव पूर्ण ढंग  से करने के लिए कार्य से संबंधित सदस्यों में तालमेल की आवश्यकता होती है और प्रबंधन तालमेल बनाने में सहायक होता है । विद्यालय में समावेशी शिक्षा के क्रियान्वयन के लिए विद्यार्थियों ,माता-पिता ,अध्यापकों  प्रशासकों तथा अन्य सदस्यों के सहयोग की आवश्यकता होती है । ये सभी विद्यालयों  की गतिविधियों के क्रियान्वयन ,प्रबंधन आदि में अपना योगदान देते हैं । विद्यालय के कार्यों की देख -रेख ,विद्यालय विकास योजना का निर्माण,  उनका क्रियान्वयन, पर्यवेक्षण ,मूल्यांकन , अनुदानों का सही प्रयोग और अन्य विद्यालयी कार्य ,विद्यालय प्रबंध समिति की जिम्मेदारी के अंतर्गत आते हैं । और यह विद्यालयों में समावेशी शिक्षा के भली-भांति क्रियान्वयन के लिए  मुख्य भूमिका निभाती है तथा  शिक्षा में समावेशन में बाधक आधारभूत कारणों को दूर कर समाज के उपेक्षित वर्ग की शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है ।सभी बच्चे हमारे देश का भविष्य है । अतः हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम इन बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराएं और उन्हें देश तथा समाज में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार करें।
संदर्भ सूची
वर्तमान समय में समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं प्रमुख चुनौतियां.  विरेंद्र कुमार.,   SETU-  ISSN  2475 -1359
शिक्षा में समावेशन चुनौती और समाधान - डॉ.  केवल आनंद
डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजुकेशन एंड लिटरेसी 2011 सर्व शिक्षा अभियान फ्रेमवर्क फॉर इंप्लीमेंटेशन 
बेस्ड ऑन द राइट ऑफ चिल्ड्रन टो फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन एक्ट 2009 मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार
"शिक्षा में समावेशन" विद्यालय प्रबंधन समिति के लिए संदर्शिका, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद

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