कक्षा 9 हिंदी बी प्रथम पाठ दुख का अधिकार

लेखक के बारे में
       प्रस्तुत पाठ के लेखक हिंदी के महान कहानीकार यशपाल जी है |उनका जन्म फिरोजपुर छावनी में सन् 1903 में हुआ | यशपाल विद्यार्थी काल से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़ गए थे |अमर शहीद भगत सिंह के साथ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया |
     यशपाल की प्रमुख कृतियां- देशद्रोही ,पार्टी कामरेड , दादा कामरेड ,झूठा सच तथा मेरी तेरी उसकी बात ,ज्ञानदान तर्क का तूफान ,पिंजरे की उड़ान ,फूलों का कुर्ता ,उत्तराधिकारी आदि | मेरी ,तेरी ,उसकी बात पर यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला | यशपाल की कहानियों में कथा रस सर्वत्र मिलता है |  उनकी कहानियों में व्यंग है| 
पाठ का साराँश _
                प्रस्तुत कहानी में उन्होंने मनुष्य के जीवन में पोशाक का महत्व बताया है अच्छी पोशाक से ही व्यक्ति का समाज में आदर सम्मान होता है |यही उसके लिए तरक्क़ी के दरवाजे खोलती है और जब मनुष्य किसी निम्न स्तरीय व्यक्ति के बारे में जानना चाहता है तो यही पोशाक बंधन बन जाती है | इसके साथ ही उन्होने समाज में फैले अंधविश्वास और ऊंच-नीच के भेदभाव को उजागर किया है | समाज में अमीर- गरीब सभी प्रकार के लोग होते हैं और सुख -दुख भी सभी के साथ होता है लेकिन गरीब परिस्थितियों से इतना विवश होता है कि दुख भी नहीं मना पाता | यशपाल जी ने इस कहानी में बूढ़ी स्त्री की इसी दशा का वर्णन किया है|
      पाठ का संक्षिप्त सार - बाजार में फुटपाथ पर एक डलिया में खरबूजे अपने सामने रखे हुए एक स्त्री कपड़े से मुँह छिपाय जोर -जोर से रो रही थी | उसके रोने के कारण इन खरबूज़ो  का कोई खरीदार नहीं था | उसी समय लेखक वहां से गुजरा तो उसने देखा आसपास की दुकानों पर बैठे लोग उसी के बारे में बातें कर रहे हैं | लेखक को उसका रोना देख कर दुख हुआ और उसने रोने का कारण जानना चाहा लेकिन उसकी महंगी पोशाक रुकावट बन गई | लोग स्त्री के बारे में तरह -तरह की बातें कर रहे थे  | कोई उसे बेहया कह रहा था , कोई उसकी नियत खराब कह रहा था ,  कोई रोटी के टुकड़ों के लिए जान देने वाले  लोगों की श्रेणी में रख रहा था | परचून की दुकान पर बैठने वाले लाला जी ने तो इन खरबूजा को धर्म नष्ट करने वाला ही बता दिया , क्योंकि उसके जवान पुत्र की मृत्यु हो गई थी और उसके घर में सूतक लगा था  |लेखक को पता लगा कि बुढ़िया का जवान बेटा सांप के डसने से कल ही मरा है | वह डेढ़ बीघा जमीन में खरबूज़ो की खेती करता था | बेलों से खरबूजे चुनते समय लड़के को सांप ने डस लिया | बुढ़िया  ने ओझा को बुलाया झाड़ फूक हुई , नाग देवता की पूजा हुई  ,घर में जो अनाज और पैसे थे सब दान दक्षिणा में उठ गये| लेकिन बुढिया का पुत्र भगवाना न बचा  | मनुष्य की मृत्यु के बाद अर्थी के लिए नया कपड़ा चाहिए होता है बुढ़िया ने इसके लिए अपने हाथों के कंगना बेच दिए  ,घर में जो कुछ था भगवाना के अंतिम संस्कार में खर्च हो गया  | अब घर में खाने को कुछ नहीं था बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे बुढ़िया ने उन्हें खरबूज़ेे खाने के लिए दे दिए | बहू का बदन बुखार से तप रहा था |  बेटा परलोक सिधार गया था |उधार वापस मिलने की कोई आशा नहीं थी इसीलिए बुढ़िया को उधार देने को कोई तैयार नहीं था | अब बुढ़िया के पास खरबूजा बेचने के सिवाय कोई चारा नहीं था , लेकिन दुख के कारण  वह बाजार में बैठकर भी रो रही थी | बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला की याद आई , जिस के पुत्र की मृत्यु हो गई थी और वह 2 महीने से बिस्तर पर पड़ी थी 2 -2 डॉक्टर उसकी सेवा में लगे हुए थे दोनों स्त्रियों का दुख सामान था लेकिन दुख मनाने में बहुत अंतर था | एक स्त्री पुत्र की मृत्यु के अगले दिन ही बाजार में खरबूज़े  बेच रही थी और दूसरी 2 महीने से अपनी सुध बुध खोए हुए डॉक्टरों की देखभाल में थी | लेखक को कुछ  समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें इसलिए वह  सोचता हुआ चला जा रहा था कि दुख मनाने का भी एक अधिकार होता है जो शायद ग़रीबो को नहीं है |
प्रश्न-उत्तर _

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