महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध
सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें यह योग्यता आ जाती है जिससे वह अपने जीवन से संबंधित सभी निर्णय स्वयं ले सकें | जहां तक महिला सशक्तिकरण की बात है , महिलाओं में भी वह क्षमता होना जहां वह परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता स्वयं हो ,उनके ऊपर किसी प्रकार का दबाव ना हो महिला सशक्तिकरण है | "जहां नेहरू जी ने कहा था ,कि लोगों को जगाने के लिए महिलाओं का जागृत होना आवश्यक है , एक बार जब वह अपना कदम उठा लेती हैं तब परिवार आगे बढ़ता है ,गांव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है "| "वही गांधी जी ने कहा था ,कि एक पुरुष को शिक्षित करने से केवल एक व्यक्ति शिक्षित होता है , जबकि एक महिला के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित होता है | जब महिला शिक्षित होगी तभी वह सशक्त होगी | महिला सशक्तिकरण के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को सशक्त करना | उनके प्रति बढ़ते अपराध और हिंसा को पूर्ण रूप से समाप्त करना और यह तभी संभव है जब समाज की राक्षसी सोच खत्म होगी , जो दहेज प्रथा ,अशिक्षा , यौन हिंसा , असमानता , भ्रूण हत्या ,घरेलू हिंसा , बलात्कार , मानव तस्करी ,एसिड अटैक जैसे घिनौने कृत्यों को जन्म देती है |
आए दिन महिलाओं पर होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है सबसे अधिक मामले दुष्कर्म के हैं |जब भी देश में कोई घटना घटित होती है , सारे देश में भूचाल आ जाता है | लोग सड़कों पर उतर आते हैं, न्याय की उम्मीद जागती है | लेकिन घटनाओं में कोई कमी नहीं आती |कब तक सहेंगी महिलाएं इस समाज में जुर्म ?क्यों आज की यह मॉडर्न पीढ़ी अपनी सोच नहीं बदलती ? महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं 21वीं सदी में भी महफूज नहीं है | नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 से 2015 के बीच महिलाओं के विरुद्ध अपराध 41.7 से बढ़कर 53.9 तक पहुंच गऐं हैं |नवजात बच्चियों से लेकर 80 साल की वृद्ध महिला तक यौन हिंसा की शिकार हो रही है |ऐसे में जरूरी है कि घटना हो जाने के बाद मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन करने और विरोध जताने के बजाय सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति घृणित विचारधारा में बदलाव लाया जाए ताकि इस समस्या का जड़ से समाधान हो सके |
लैंगिक भेदभाव देश में सांस्कृतिक ,सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश के विकास में बाधा डालता है | भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है | इस तरह की बुराइयों को मिटाने के लिए लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल सकता है और मिला है जिससे आज हजारों महिलाएं संवेदनशील माताएं , सक्षम सहयोगी ,सहृदय बेटियां और औद्योगिक क्षेत्रों में भी कई भूमिकाओं को बड़ी कुशलता से निभा रही हैं लेकिन आज भी दुनिया के कई हिस्सों में समाज उनकी भूमिका को नजरअंदाज कर रहा है इसके चलते महिलाओं को बड़े पैमाने पर असामानता ,उत्पीड़न ,वित्तीय निर्भरता और अन्य सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता है | इन बंधनों से मुक्त कराने के लिए महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त होना आवश्यक है इस आधार पर महिलाओं को कानूनी तौर पर विभिन्न अधिकार प्राप्त है जैसे
(1) समान वेतन का अधिकार -समान पारिश्रमिक अधिनियम के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता |
( 2). कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ कानून अधिनियम के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा अधिकार है |
(3). कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार महिलाओं को गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक लिंग पर रोक अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है |
(4 ). संपत्ति का अधिकार - हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के अनुसार नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष का बराबर का अधिकार है|
(5). गरिमा और शालीनता का अधिकार इसके अंतर्गत महिलाओं की किसी भी जांच प्रक्रिया में महिला अधिकारी या महिला सहायक का होना आवश्यक है |
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति 2001 का लक्ष्य महिलाओं की उन्नति विकास तथा सशक्तिकरण को मूर्त रूप देना है| इस नीति के उद्देश्य में महिलाओं के विकास हेतु सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों के द्वारा एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है ,ताकि वे अपनी क्षमताओं को समझ सकें | सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक जीवन में महिलाओं द्वारा भागीदारी और निर्णय क्षमता का समान अवसर, स्वास्थ्य देखभाल ,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा व्यवसायिक मार्गदर्शन, सुरक्षा ,सरकारी नौकरी में समान अवसर,विकास प्रक्रिया में लैंगिक दृष्टिकोण को लागू करना, महिलाओं तथा बालिकाओं के खिलाफ होने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन जैसी अनेक योजनाएं शामिल हैं| इन सभी योजनाओं के होते हुए भी क्या हम समझ सकते हैं कि आज भी महिलाओं के प्रति लोगों का दृष्टिकोण इतना संकरण क्यों है? क्यों दिन प्रतिदिन अपराध और यौन शोषण की घटनाएं बढ़ती जा रही है ? क्यों रात के समय घर से निकलने में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं? रात क्या दिन में भी एकांत में पूर्ण सुरक्षा की स्थिति नहीं होती | बड़े से बड़ा अपराध करने के बाद भी ज़मानत मिल जाना या अपराधी की सजा में देरी क्या इस इस मानसिकता को बढ़ावा नहीं देती कि समाज में पुरुषों का वर्चस्व है \(एनसीआरबी)राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने देश में हुए अपराध के नवीनतम आंकड़े जारी किये है इन आंकड़ों के अनुसार देशभर में वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,59,849 मामले दर्ज किए गए हैं| इन अपराधों में हत्या, बलात्कार ,दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, ऐसिड हमले ,महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अपहरण आदि शामिल है इन मामलों में 93.1% आरोपी पीड़ित के जानने वाले ही हैं | पिछले 3 साल का रिकॉर्ड देखा जाए तो साल 2015 में महिलाओं के प्रति अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज किए गए थे |2016 में इस आंकड़े में 9,711 मामलों की बढ़ोतरी हुई और 3,30,954 मामले दर्ज हुए वहीं 2017 में ऐसे 20,895 मामले और बढ़ गए| एनसीआरबी रिपोर्ट 2018 के अनुसार महिलाओं के प्रति अपराध की दर लगातार बढ़ रही है यह 2017 के मुकाबले 26 फ़ीसदी बढ़ी है वर्ष 2018 में बच्चियों किशोरियों और महिलाओं के खिलाफ 14,326 अपराध हुए| 2019 में उन्नाव केस,हैदराबाद केस, बिहार के शेल्टर होम केस, जैसे सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं |निर्भया केस के दोषियों को अभी तक फांसी नहीं हुई है |लेकिन हैदराबाद डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या कांड में दोषियों का पुलिस द्वारा एनकाउंटर किया जाना एक सराहनीय कदम कहा जा सकता है | यदि इसी तरह अपराधियों को तुरंत सजा का प्रावधान हो जाए तो अवश्य ही अपराधों में कमी आएगी |
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि किस तरह महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है| इसके लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम काफी नहीं होंगे| आवश्यकता है माता-पिता को अपने लड़के में बचपन से ही महिलाओं के प्रति सम्मान जगाने की, उनकी मानसिकता में बदलाव लाने की , घर में लड़कों और लड़कियों को समान अधिकार देकर उनकी सोच में बदलाव लाने की, साथ ही समाज के बुद्धिजीवियों और वरिष्ठ नागरिकों को भीआगे आना होगा | सिर्फ कानून बनाने से महिलाओं पर बढ़ रहे अपराधों पर लगाम नहीं लगाई जा सकती है ,बल्कि लोगों की सोच और मानसिकता में बदलाव लाना ज्यादा जरूरी है तभी महिलाएं वास्तव में सशक्त हो सकती हैं और अपने जीवन ,समाज और देश की प्रगति में भागीदार बन सकती हैं |
Bhut umda article bdhai sweekar kren.
ReplyDeleteBeauty of this article is Data representation, Shaandaar 💯👌👌
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