प्रयोजनमूलक हिंदी संभावनाएं और प्रमुख आयाम
वर्तमान सदी में साहित्यिक हिंदी के अतिरिक्त हिंदी का एक अपेक्षाकृत नवीन रूप उभर कर सामने आ रहा है जिसे प्रयोजनमूलक हिंदी की संज्ञा दी गई है | हिंदी भाषा को राजभाषा के पद पर सही रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए इस प्रयोजनमूलक हिंदी को अधिक समृद्धशाली और व्यापक बनाने की आवश्यकता है| प्रयोजनमूलक हिंदी के लिए कामकाजी हिंदी तथा व्यवहारिक हिंदी आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जा रहा है । प्रशासन से संबंधित कार्य व्यापारो के लिए इन शब्दों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है ।इस प्रकार वर्तमान में हिंदी के दो रूप देखे जा सकते हैं ।
2 साहित्य हिंदी - साहित्यिक हिंदी कलात्मक, लालित्य पूूूूर्ण रोचक तथा शब्द शक्तियों, और अलंकार आदि के चमत्कार कौशल से संपन्न होती है इसका प्रयोग साहित्यकार अपने साहित्य में करता है इसका संबंध मूलत: मानव ह्रदय अर्थात भाव पक्ष और कला पक्ष से है । जीवन के व्यवहारिक एवं तकनीकी पक्ष के साथ साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
3 व्यवसायिक हिंदी - व्यवसायिक हिंदी तथा व्यवहारिक हिंदी, तथा कामकाजी हिंदी का ही अधिक प्रचलित नाम प्रयोजन हिंदी है ।
2 सूचना एवं प्रचारात्मक हिंदी - सूचनापरक एवं प्रचारात्मक हिंदी के अंतर्गत प्रेस विज्ञप्ति ,विज्ञापन, समाचार ,रिपोर्ट ,आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारित विभिन्न सूचना परक सामग्री आ सकती है ।
3 शास्त्रीय हिंदी- शास्त्रीय हिंदी का क्षेत्र बहुत व्यापक है इसके अंतर्गत समाजशास्त्री काव्य भाषा ,विधि आदि को सम्मिलित किया जा सकता है ।
4 वैज्ञानिक तकनीकी हिंदी- वैज्ञानिक क्षेत्र विशाल और व्यापक है ।आज के वैज्ञानिक युग में इस क्षेत्र में नए-नए प्रयोगों और नई नई खोजों के परिणाम स्वरूप नई-नई संकल्पना ओं का तेजी से विकास हो रहा है नए शब्द प्रयोग में आ रहे हैं । हिंदी में नई-नई संकल्पनाओ को अभिव्यक्ति देने वाली नई नई शब्दावलीया अनायास ही आती जा रही हैं वैज्ञानिक हिंदी के अंतर्गत भौतिक विज्ञान , जीव विज्ञान ,नृ विज्ञान ,मनोविज्ञान , ध्वनि विज्ञान ,चिकित्सा विज्ञान आदि का समावेश अपेक्षित है ।
1. साहित्य रूप जिस की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है तथा जिसने भाव और अभिव्यक्ति की अनेक शैलियों एवं पद्धतियों को विकसित किया है हिंदी का यह रूप अत्यंत समृद्ध एवं संपन्न है ।
2 हिंदी का दूसरा रूप जिसे प्रयोजनमूलक हिंदी कहा जाता है अपेक्षाकृत नवीन है । प्रयोजन मूलक हिंदी का अर्थ है किसी विशेष प्रयोजन के लिए उपयोग करना । यह हिंदी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप है क्योंकि यह जीवन की विविध स्थितियों और आवश्यकताओं के संपादन हेतु प्रयोग में आने वाला रूप है । किसी भी भाषा के दो पक्ष होते हैं एक का संबंध हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति और आनंदानुभूति से है ,तो दूसरे का संबंध विशेष रूप से सामाजिक आवश्यकता और व्यवस्था से है ।भाषा का यह समाज सापेक्ष और रोजमर्रा के कामकाज के लिए संप्रेषण का माध्यम है यही भाषा का प्रयोजन मूलक पक्ष है ।
वर्तमान सदी में वैज्ञानिक औद्योगिक वाणिज्यिक और प्रशासनिक आदि सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भाषा का जो रूप उभर रहा है वह प्रयुक्ति के रूप में सामने आ रहा है इसी कारण वैज्ञानिक हिंदी , तकनीकी हिंदी और कार्यालयी हिंदी जैसे शब्दों का प्रयोग आम हो रहा है । विषय -विशेष से संबंधित शब्दावली की संरचना हो रही है । नवीन शब्दों के साथ-साथ शब्दों की संरचना भी प्रभावित हो रही है । तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिक, औद्योगिक तकनीकी ,प्रशासनिक आदि क्षेत्रों में प्रयुक्त हिंदी के विविध रूप प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूप है जिनकी शैली सामान्य भाषा की शैली से भिन्न देखी जा सकती है ।
व्यक्ति समाज तथा भाषा का संबंध त्रिभुज की तीन भुजाओं जैसा है । भाषा व्यक्ति को समाज से जोड़ती है तथा व्यक्ति और समाज के बीच भाषा की एक कड़ी का कार्य करती है । समाज के भिन्न-भिन्न रूप है ,वैज्ञानिक अनुसंधान से संबद्ध समाज , प्रशासनिक कार्यालय का समाज तथा वाणिज्य बैंक उद्योग का समाज आदि । समाज के भिन्न-भिन्न समूहों के विषय एक दूसरे से अलग होते हैं ।प्रत्येक समाज की अपनी भाषा भी एक सीमा तक अलग-अलग होती है ।प्रयोग के विशिष्ट प्रयोजन के कारण उस भाषा के सर्वमान्य रूपों में भिन्नता आ जाती है किसी भाषा के यह विविध रूप उस प्रयोजन विषय पर ही आधारित हैं। विभिन्न प्रयोजनों के लिए गठित समाज का समूह की भाषा के विभिन्न रूप ही भाषा के प्रयोजनमूलक पक्ष हैं ।
वर्तमान सदी में प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रति सजगता आई है किंतु उसके स्वरूप को हिंदी भाषा के रूप के अन्य रूपों से अलग कर देखने की आवश्यकता है । इस दृष्टि से हिंदी के यह रूप देखे जा सकते हैं ।
1 सामान्य हिंदी
2 साहित्यिक हिंदी
2 साहित्यिक हिंदी
3 व्यवसायिक हिंदी
1 सामान्य हिंदी - हिंदी की बोलचाल का वह रूप जो व्यक्तिगत स्तर पर प्रयुक्त किया जाता है यह सामान्य हिंदी कहलाता है । इसकी स्थिति मूलत:हिंदी के मातृभाषिक क्षेत्र तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में देखी जा सकती है इनमें ऐसे क्षेत्र भी हैं जो सीधी तरह हिंदी के क्षेत्र नहीं कहे जा सकते , किंतु अनेक कारणों से मातृभषा क्षेत्र की भूमिका निभाते हैं । उदाहरण के लिए हैदराबाद ,मुंबई , कोलकाता आदि शहरों में भिन्न-भिन्न भाषा भाषी टूटी-फूटी हिंदी का ही प्रयोग करते हैं । सामान्य हिंदी के प्रयोग में व्याकरण के नियमों का प्राय: आभाव है ।
2 साहित्य हिंदी - साहित्यिक हिंदी कलात्मक, लालित्य पूूूूर्ण रोचक तथा शब्द शक्तियों, और अलंकार आदि के चमत्कार कौशल से संपन्न होती है इसका प्रयोग साहित्यकार अपने साहित्य में करता है इसका संबंध मूलत: मानव ह्रदय अर्थात भाव पक्ष और कला पक्ष से है । जीवन के व्यवहारिक एवं तकनीकी पक्ष के साथ साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
3 व्यवसायिक हिंदी - व्यवसायिक हिंदी तथा व्यवहारिक हिंदी, तथा कामकाजी हिंदी का ही अधिक प्रचलित नाम प्रयोजन हिंदी है ।
व्यावसायिक हिंदी रह हिंदी है जिसका संबंध हमारे व्यवसायिक कार्यकलापों कार्यालयी व्यवहारो, ज्ञान विज्ञान शास्त्र एवं व्यवहार से है यह जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयोग में आती ही हैं ,भविष्य की योजनाओं को रूपाचित करने एवं तत्संबंधी तकनीक तथा व्यवसायिक क्रियाकलापों के संपादन की भूमिका भी निभाती है इसलिए इसे विशिष्ट प्रयोजनपरक अथवा प्रयोजनमूलक हिंदी की संज्ञा दी जाती है ।
अतः स्पष्ट है कि प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग प्रयोजन विशेष रूप से अर्थात उद्देश्य विशेष से प्रयुक्त होने वाली हिंदी से ही है प्रत्येक भाषा का एक आधारभूत व्याकरण होता है जो विभिन्न सामाजिक संदर्भों में समरूप दृष्टिगोचर होता है किंतु अगर भाषा जीवंत है तो विभिन्न रूपों में विभिन्न स्वरूप धारण करने में भी समर्थ होती है भाषा एक सामाजिक यथार्थ है तथा हिंदी एक जीवन भाषा के रूप में प्रचलित और प्रयुक्त है अतः:इसके प्रचलन और प्रयोग के अनेक रूप समाज में उपलब्ध हैं। हिंदी भाषा इस समय अनेक सामाजिक ,सांस्कृतिक ,शास्त्रीय या वैज्ञानिक और शैक्षिक संदर्भों में उपयोग में आ रही है ।
प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रमुख आयाम - प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध आयाम हैं। जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित का वर्णन किया जा सकता है ।
1 सामान्य बोलचाल की हिंदी
2 वाणिज्य हिंदी
2 वाणिज्य हिंदी
इसके अनेक उपभेद भी संभव है वेदों की भाषा ,सुनारों की भाषा ,सट्टा शेयर बाजार की भाषा के कई रूप दृष्टिगोचर होते हैं ।
1 कार्यालयी हिंदी - सरकारी कार्यालयों में प्रशासनिक कार्यों तथाा कार्मि प्रबंधध में औद्योगिक कार्यों से संबंधित कार्य व्यापार को निपटाने के लिए प्रयुक्त होने वाली हिंदी कार्यालयी हिंदी है ।कार्यालय हिंदी के अंतर्गत टिप्पणियां ,पत्राचार ,बैठकों की कार्यसूची, ज्ञापन अनुस्मारक ,कार्यालय आदेश ,निविदा सूचना आदि से संबंधित प्रश्न पत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है ।
2 सूचना एवं प्रचारात्मक हिंदी - सूचनापरक एवं प्रचारात्मक हिंदी के अंतर्गत प्रेस विज्ञप्ति ,विज्ञापन, समाचार ,रिपोर्ट ,आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारित विभिन्न सूचना परक सामग्री आ सकती है ।
3 शास्त्रीय हिंदी- शास्त्रीय हिंदी का क्षेत्र बहुत व्यापक है इसके अंतर्गत समाजशास्त्री काव्य भाषा ,विधि आदि को सम्मिलित किया जा सकता है ।
4 वैज्ञानिक तकनीकी हिंदी- वैज्ञानिक क्षेत्र विशाल और व्यापक है ।आज के वैज्ञानिक युग में इस क्षेत्र में नए-नए प्रयोगों और नई नई खोजों के परिणाम स्वरूप नई-नई संकल्पना ओं का तेजी से विकास हो रहा है नए शब्द प्रयोग में आ रहे हैं । हिंदी में नई-नई संकल्पनाओ को अभिव्यक्ति देने वाली नई नई शब्दावलीया अनायास ही आती जा रही हैं वैज्ञानिक हिंदी के अंतर्गत भौतिक विज्ञान , जीव विज्ञान ,नृ विज्ञान ,मनोविज्ञान , ध्वनि विज्ञान ,चिकित्सा विज्ञान आदि का समावेश अपेक्षित है ।
वास्तव में प्रयोजनमूलक हिंदी के शब्दार्थ को स्वीकार करने पर सामान्य बोलचाल की हिंदी और साहित्यिक हिंदी भी इसके दायरे में आ जाती है यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने साहित्यिक हिंदी को तो कुछ विद्वानों ने सामान्य व्यवहार की हिंदी को प्रयोजनमूलक हिंदी के अंतर्गत लिया है किंतु उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रयोजन मूलक हिंदी की एक निश्चित पहचान बनती जा रही है ।
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