हिंदी भाषा : विविध प्रयोग BHDLA 135

अध्याय 1
 भाषा तत्व और बोधन
   1 -हिंदी की लिपि और वर्तनी का परिचय
2- हिंदी की ध्वनियां
3- हिंदी का प्रयोजनमूलक स्वरूप
4- विज्ञान के विषय का बोधन 
संस्कृति विषय का बोधन और शब्दकोश का उपयोग 
समाज विज्ञान विषय का बोधन और निबंध रचना का परिचय
 भाषण शैली 
अध्याय 2 
वाचन और विविध विषय 
सामाजिक विज्ञानों की भाषा( इतिहास के संदर्भ में ) तथा वर्तनी के कुछ नियम सामाजिक विज्ञानों की भाषा ( राजनीति विज्ञान)  तथा शब्द रचना 
मानविकी की भाषा  (ललित कला ) तथा विशेषण
 विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी की भाषा तथा पारिभाषिक शब्द
 विधि एवं प्रशासन की भाषा तथा पारिभाषिक शब्द और अर्थ 
वाणिज्य की भाषा तथा पारिभाषिक शब्द
अध्याय 1
हिंदी की लिपि और वर्तनी का परिचय
प्रस्तावना
 भाषा और लिपि 
लिपि के फायदे
लेखन की विधि
 देवनागरी लिपि 
वर्णों का मानक रूप 
देवनागरी लिपि के लेखन की सामान्य कठिनाइयां
 वर्तनी 
वर्तनी के कुछ नियम
 हिंदी की लिपि और वर्तनी का मानकीकरण रूप 
सारांश
प्रस्तावना प्रत्येक भाषा का प्रयोग हम दो रूपों में करते हैं उच्चारित एवं लिखित ।भाषा के मौखिक या उच्चारित रूप को मूर्त रूप देने के लिए प्रत्येक भाषा में ऐसे चिन्हों की व्यवस्था होती है जिसके द्वारा भाषा  को लिखित रूप प्रदान किया जाता है । भाषा का मूल तत्व है वर्तनी जिसके माध्यम से मौखिक भाषा को लिखित या मूर्त रूप प्रदान किया जाता है वर्तनी से तात्पर्य वर्ण विन्यास से है इसी वर्ण विन्यास या ध्वनियों के
 उपयुक्त क्रम और लेखन से सार्थक शब्द बनते हैं।  इस लिपि की अनेक विशेषताएं हैं लेकिन साथ ही इसके लेखन में कुछ कठिनाइयां भी है , इसीलिए भारत सरकार ने वर्तनी के मानक स्वरूप का सुझाव दिया है।
इस पाठ में हम वर्तनी तथा लिपि का परिचय प्रस्तुत करेंगे।
भाषा और लिपि भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं और परस्पर विचार विमर्श करते हैं तथा अपनी भावनाओं को अनुभूति प्रदान करते हैं ।  भाषा शब्द भाष् धातु से बना है । भाष् का अर्थ है - "कहना या प्रकट करना "अर्थात वह माध्यम जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को प्रकट करता है अथवा वह साधन जिसके द्वारा परस्पर विचार विनिमय करता है। 
          भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा की अनेक परिभाषाएं दी है । जिनमें कुछ का परिचय यहां प्रस्तुत है ।
भारतीय विद्वानों में डॉक्टर भोलानाथ तिवारी, देवेंद्र नाथ शर्मा,रविंद्र नाथ श्रीवास्तव आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं तथा पाश्चात्य मतों में प्लेटो एवं जोशुआ हटमा के विचार प्रमुख है।
डॉ भोलानाथ तिवारी- भाषा उच्चारण अवयव से उच्चारित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके द्वारा एक समाज के लोग आपस में भावों और विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं।
 डॉक्टर देवेंद्र नाथ शर्मा -जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार विनिमय या सहयोग करते हैं उस यादृच्छिक, रूढ़ ,ध्वनि संकेत प्रणाली को भाषा की संज्ञा देते हैं। 
अतः भाषा यादृच्छिक प्रतीकों से निर्मित कोड व्यवस्था  है जिसके द्वारा मनुष्य दूसरे मनुष्यों के मुख से निकली हुई ध्वनियों के माध्यम से सामाजिक प्रयोजनों की सिद्धि के लिए संदेशों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं ।
प्लेटो के अनुसार विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा दी जाती है ।
जोशो हटमो - भाषा एक मौखिक प्रतिकात्मक पद्धति है ।
 लिपि -मौखिक भाषा या उच्चारित भाषा को लिखित रूप प्रदान करने के लिए लिपि चिन्हों की आवश्यकता पड़ी। लिपि का शाब्दिक अर्थ है लीपना , चित्रित करना या लिखना ।भाषा के लिखित रूप के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है वह लिपि कहलाता है। पहले मनुष्य केवल मौखिक भाषा का प्रयोग करता था लिखित भाषा का नहीं लेकिन संस्कृति के विकास के साथ उसे लिखित भाषा की भी आवश्यकता पड़ी क्योंकि मानव जीवन के विकास एवं फैलाव के कारण लोग भी दूर-दूर तक फैल गए थे और दूर रहने वालों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मौखिक ध्वनि संकेतों को लिखित रूप देने की आवश्यकता थी। प्राचीन काल में लिखना बहुत कठिन था इसीलिए उसका अधिक प्रचार नहीं हुआ था  । आरंभ में मनुष्य ने ताड़ पत्र तथा पत्थर की लाट आदि पर लिखना प्रारंभ किया था किंतु मध्य युग में कागज के अविष्कार के बाद तथा टंकण व्यवस्था  के  आरंभ होने के बाद सुचारू रूप से लिखित भाषा का प्रचार प्रसार हुआ । 
अलग-अलग भाषाओं के लिए अलग-अलग लिपी चिन्हों का प्रयोग किया जाता है हिंदी और संस्कृत भाषा के लिए देवनागरी  लिपि पंजाबी भाषा के लिए गुरुमुखी ,उर्दू के लिए पर्शियन, अंग्रेजी के लिए रोमन  लिपि का प्रयोग किया जाता है तथा बंगला , पंजाबी और गुजराती भाषाओं की लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है ।
लिपि से फायदे - लिखने पढ़ने से ही ज्ञान का विस्तार हो सकता है वास्तव में जो भाषाएं लिखी जाती हैं वे ही प्रगति करती हैं उनको ही बोलने वाला समाज उन्नति करता है अर्थात लिपि से समाज के विकास को बल मिलता है। लिपि के महत्व पर इस प्रकार प्रकाश डाला जा सकता है । "लिपि का सबसे बड़ा गुण है विचार को सुरक्षित रखते हुए उसे समय से आगे बढ़ाना " हम बोलते हैं तो बात खत्म हो जाती है लिखने पर उसे स्थायित्व मिलता है लिखे हुए अक्षर ध्वनि की तरह मिट नहीं जाते हम अपने विचारों को खुद भी बाद में पढ़ सकते हैं इस कारण हम अधिक व्यवस्थित रूप से लिखते हैं थोड़े शब्दों में सारी बात को रखने का प्रयत्न करते हैं । बोलचाल की भाषा और लिखित भाषा के स्वरूप में अंतर है अतः हम कह सकते हैं कि लिखने से भाषा का विकास होता है ।
लिपि से भाषा यानी भाषा के माध्यम से कहे हुए विचार सुरक्षित रखे जा सकते हैं इसी कारण हमारे पास पुराने जमाने की कृतियां सुरक्षित हैं उस समय का ज्ञान विज्ञान सुरक्षित है यह विचार पीढ़ी दर पीढ़ी आगे जाते हैं इसी कारण मानव विकास करता जाता है मानव विकास के लिए लिपि आवश्यक है  । विकास की यह कहानी ही हमारी संस्कृति है लिपि के कारण हम संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं लिपि के माध्यम से हम संप्रेषण का विस्तार कर सकते हैं हम बोलेंगे तो ज्यादा से ज्यादा कुछ हजार लोग सुन सकेंगे लेकिन जब समाचार पत्रों में लेख लिखा जाता है तो लाखों लोग पढ़ सकते हैं भारत के ही नहीं दुनिया के कोने कोने में बैठे हुए लोग हमारे विचार जान सकते हैं लेखन से आने वाली पीढ़ी  के लोग भी हमारे विचार जान सकेंगे ।
 लेखन की विधि - ध्वनियों के क्रम द्वारा उच्चारण का क्रम निश्चित होता है । लिपि में उच्चारित ध्वनि के जो चिन्ह निश्चित है उन्हें वर्ण कहते हैं  जैसे वर्ण  "प "एक ध्वनि का प्रतीक है और "व" दूसरी ध्वनि का । इसी प्रकार काल शब्द में तीन ध्वनियां है । क+आ+ल । लेखन में भी इसी क्रम में ध्वनियों को दिखाया जाता है। किसी भाषा की वर्णमाला उस भाषा की सभी ध्वनियों की व्यवस्था होती है हिंदी की लिपि देवनागरी है। यह लिपि सभी ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करती है ।
सभी लिपियों की व्यवस्था एक समान नहीं होती । देवनागरी लिपि बांयी ओर से लिखी जाती है जबकि अरबी फ़ारसी लिपि दांय से बांय की तरफ लिखी जाती है। रोमन लिपि में व्यंजन के साथ स्वर का प्रयोग किया जाता है जबकि देवनागरी में स्वर के स्थान पर मात्राओं का प्रयोग किया जाता है । जिससे शब्द  आकार में छोटे बनते हैं इस प्रकार देवनागरी लिपि हिंदी के लिए सर्वोत्तम लिपि है।
देवनागरी लिपि
 वर्णों का मानक रूप
भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी निदेशालय को मानक देवनागरी लिपि निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया था । निदेशालय ने 1966 -2006 में मानक देवनागरी लिपि प्रस्तुत की । इसका उद्देश्य था कि यह निश्चित किया जाए कि आने वाले समय में कौन -कौन से वर्ण मानक होंगे। ताकि लोग मानक वर्णों का ही प्रयोग करें । क्योंकि हिंदी के क्षेत्र की विशालता के कारण कुछ वर्णों के लेखन में विविधता पाई जाती है जिससे मुद्रण में कठिनाई होती है कंप्यूटर के माध्यम से संयोजन में भी कठिनाई होती है अतः वर्णों का मानक स्वरूप अनिवार्य है ।
मानक देवनागरी वर्णमाला निम्न प्रकार है स्वर -अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
मात्राएं -
अनुस्वार -अं
  विसर्ग - अ:
व्यंजन- क ख ग घ ड़
च छ ज झ  ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व 
श ष स ह
द्विगुण व्यंजन - ड़ ढ़
 संयुक्त व्यंजन -क्ष त्र ज्ञ श्र
लेखन में कठिनाई छपाई की आधुनिक मशीनों में देवनागरी लिपि के लेखन में कुछ कठिनाइयां आ रही हैं विशेष रूप से संयुक्त वर्णों के लेखन में  ,जैसे  पद्मश्री , उद्देश्य, उद्यान  आदि -द्म दो वर्णों का योग है । द+ म ,द्द में द+ द तथा द्य में द+ य का योग है। लेखन की कठिनाई के कारण इस तरह के वर्णों का प्रयोग कम हो गया है इनका स्थान निम्न  प्रकार के वर्णो ने ले लिया है  । पद् मा ,उद् यान  , द् वारा आदि 
निदेशालय ने संयुक्त वर्ण बनाने के संबंध में कुछ सुझाव दिए हैं  ।इससे लेखन विधि और मुद्रण आदि सरल हो जाता है  । 
संयुक्त वर्ण बनाने की विधि  मानक वर्णों से संयुक्त वर्ण बनाने के संदर्भ में तीन सुझाव दिए हैं 
1- र , ऋ से बनने वाले संयुक्त व्यंजनों के निम्नलिखित रुप होंगे  
क्रम , श्रम ,तर्क , ड्रामा  ,बर्र , रुपया  ,रूप ह्रदय ,श्रंगार  इत्यादि ।
कुछ वर्णों के अंत में खड़ी पाई होती है उनको निकालकर दूसरा अक्षर संयुक्त वर्ण बन जाता है  । जैसे क्ष स ख ग घ च ज 
उदाहरण के लिए मुख्य , ग्यारह, विघ्नों ,प्राच्य , पत्ता , ध्यान ,प्यार आदि
क और फ जैसे वर्णों से संयुक्त वर्ण बनाने के लिए  आखरी रेखा थोड़ी काट देते हैं जैसे मुक्का,  हफ्ता 
इनके अतिरिक्त अन्य व्यंजनों में हलंत लगाकर संयुक्त वर्ण बना सकते हैं जैसे
ट् ,ठ् ड् ,द्  
वर्तनी -कई बार मुद्रण में एक ही शब्द की वर्तनी के अनेक रूप दिखाई देते हैं जैसे संबंध , सम्बन्ध,संबन्ध ,सम्बंध इस प्रकार के शब्दों से सीखने वाले को कठिनाई होती है अतः एकरूपता लाने के लिए हिंदी निदेशालय ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं जैसे पंचम वर्ण को उस वर्ग के पहले चार वर्णों से पहले अनुस्वार से दिखाया जाए जैसे न को त, थ  द ,ह  से पहले यूं लिखा जाए      मानक रूप -अंत ,पंथ ,बंद ,अंधा , हिंदी , झंडा, पंछी 
     पूर्व रुप -अन्त ,पन्त ,बन्द ,अन्धा , हिन्दी ,झंडा ,पन्छी 
ध्यान रखना चाहिए कि नासिक्य व्यंजनों के बाद उस वर्ग के पहले चार वर्णों के अतिरिक्त और कोई वर्ण  आएगा तो नासिक्य व्यंजन का आधा रूप लिखा जाएगा अनुस्वार नहीं -
जैसे पुण्य ,गन्ना ,साम्य ,निम्न , अन्य आदि शुद्ध रूप हैं जबकि पुंय ,गंना, निंन , अंय आदि अशुद्ध रूप हैं ।
वर्तनी के कुछ नियम - शब्द का लिखित रूप उसकी वर्तनी कहलाता है इसको उर्दू में हिज्जे तथा अंग्रेजी में स्पेलिंग कहते हैं  भाषा को सुगठित रूप प्रदान करने में वर्तनी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तथा वर्तनी को सुगठित करने में लिपि चिन्हों की । यदि किसी शब्द की वर्तनी अशुद्ध होगी तो शब्द भी अशुद्ध होगा जैसे किताब शुद्ध शब्द है और कीताब अशुद्ध । अनेक स्थानों पर मात्राओं के गलत होने के कारण अर्थ भेद हो जाता है। जैसे 
 अनुस्वार ( ं) के स्थान पर अनुनासिक 
(  ॅं) लगाने से शब्द का अर्थ एवं उच्चारण सभी बदल जाते हैं और शब्द गलत हो जाता है जैसे हंस , हॅंस शब्दों में हंस का अर्थ पक्षी तथा हॅंस का अर्थ (क्रिया ) हॅंसना है ।इसको भली-भांति समझने के लिए अनुस्वार तथा अनुनासिक के अंतर को समझना आवश्यक है। अनुस्वार वर्णमाला के पंचमाक्षर ड़ , ञ, ण ,न, म के लिए प्रयोग होता है तथा अनुनासिक केवल नाक से निकलने वाली आवाज है इसी प्रकार ड़,ढ़ को लेकर भी संशय उत्पन्न होता है । ड  का प्रयोग शब्द के आरंभ ,व्यंजन गुच्छ तथा अनुस्वार के बाद होता है  जैसे डर , डलिया  आदि ।जबकि ड़ का प्रयोग शब्द के आरंभ में नहीं होता जैसे  लड़का , खिड़की आदि । 
हिंदी में संस्कृत अंग्रेजी तथा अरबी, फारसी उर्दू आदि अनेक भाषाओं के शब्द मिलते हैं इन सब के उच्चारण में अंतर होता है जैसे संस्कृत शब्दों में क्ष श्र त्र ज्ञ (  ज्ञानी , क्षत्रिय त्रिशूल , कक्षा जैसे शब्द मिलते हैं तो उर्दू में(  क़ ख़ ग़ ज़ फ़  )ज़ंज़ीर आवाज़ ख़त, आदि अंग्रेजी में रिक्शा , स्टेशन , डॉक्टर  डिक्शनरी ,मिस्टर  आदि ।अंग्रेजी तथा उर्दू शब्दों में 'क्ष' के लिए 'क्श 'का प्रयोग होता है।
यहां शब्द के स्रोत के आधार पर वर्तनी की शुद्धि का वर्णन किया गया है ।
हिंदी के अपने शब्दों में भी वर्तनी के अनेक रूप पाए जाते हैं जिसके कारण अशुद्धि होने की संभावना रहती है ।इसी कारण शिक्षा मंत्रालय ने लिपि के मानकीकरण के साथ-साथ वर्तनी संबंधी कुछ नियम निर्धारित किए हैं जिनके प्रयोग से इस प्रकार की अशुद्धि की संभावना कम हो जाती है ।
हिंदी लिपि और वर्तनी का मानकीकरण 
जिस प्रकार हमारे उच्चारण में वर्तनी की भिन्नता मिलती है उसी प्रकार देवनागरी लिपि में भी चिन्हों की भिन्नता दिखाई देती है। इसी भिन्नता में एकरूपता लाने के लिए भारत सरकार के हिंदी निदेशालय ने  1983 तथा 2006 में  "हिंदी लिपि और वर्तनी का मानकीकरण " पुस्तक प्रकाशित की जिसमें वर्तनी संबंधी नियम निर्धारित किए  हैं । जिनका हम यहां अध्ययन करेंगे।
1-संयुक्त व्यंजन 
क-खड़ी पाई वाले व्यंजन
खड़ी पाई वाले व्यंजन का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर ही बनाया जाना चाहिए जैसे ख्याति ,लग्न , विघ्न, व्यास ,कच्चा ,छज्जा  राष्ट्रीय, कुत्ता ,पत्थर, डिब्बा ,सभ्य, यक्ष्मा, शय्या
 ख- अन्य व्यंजन  -क और फ  के संयुक्ताक्षर : पक्का , दफ्तर   की तरह लिखना चाहिए।
ड़,छ,ट,ड,ठ,ढ,द और ह के संयुक्ताक्षर हल चिन्ह लगाकर ही बनाए जाएं जैसे लड्डु,
 बुड् डा,विद् या,चिह्न न, ब्रह् मा, आदि ( लड्डू बुड्ढा विद्या चिन्ह ब्रह्मा ) नहीं।
संयुक्त 'र ' के प्रचलित तीनों रूप यथावत रहेंगे यथा - प्रकार ,धर्म ,राष्ट्र
 श्र का प्रचलित रूप मान्य होगा इसे शृ के रूप में नहीं लिखा जाएगा ।त॒ +र के संयुक्त रूप के लिए  त्र और तृ दोनों रूपों में से किसी एक के प्रयोग की छूट होगी किंतु क्र  को क्त  के रूप में नहीं लिखा जाएगा ।
 हल् चिन्ह युक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षर के द्वितीय व्यंजन के साथ  'इ ' की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व किया जाएगा ना कि पूरे युग्म से पूर्व जैसे-  कुट्टीम  ,द्वितीय , बुद्धिमान चिन्हित आदि
 संस्कृत में संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे जैसे संयुक्त ,चिन्ह ,विद्या चञ्चल , विद्वान  ,वृद्ध  ,द्वितीय ,बुद्धि आदि
विभक्ति चिन्ह
 क - हिंदी के विभक्ति चिन्ह सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक लिखे जाएं , जैसे - राम ने ,राम को ,राम से तथा स्त्री ने, स्त्री को, स्त्री से आदि । सर्वनाम शब्दों में विभक्ति चिह्न  प्रतिपदिक  के साथ मिलाकर लिखे जाएं  ।जैसे  -उसने , उसको, उससे , उस पर आदि
ख- सर्वनाम के साथ यदि दो विभक्ति चिन्ह हैं  तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक लिखा जाए , जैसे  -उसके लिए ,इसमें से । 
 ग - सर्वनाम और विभक्ति के बीच ' ही ', 'तक' आदि का निपात हो तो विभक्ति को पृथक लिखा जाए  । जैसे -आप ही के लिए , मुझ तक को आदि ।
क्रियापद संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएं पृथक -पृथक लिखी जाएं  ,जैसे  -पढ़ा करता है  ,आ सकता है , जाया करता है , खेला करेगा आदि 
हाईफन -
 हाईफन का विधान  स्पष्ट ता के लिए किया गया है  ।
 क - द्वंद समास में पदों के बीच हाईफन रखा जाए  ।जैसे  -राम- लक्ष्मण ,शिव- पार्वती ,देख-रेख ,लेन -देन ,पढ़ना- लिखना आदि।
 ख - सा, जैसा आदि से पूर्व हाईफन रखा जाए जैसे - तुम-सा ,राम -जैसा
 ग-  तत्पुरुष समास में हाईफन का प्रयोग केवल वहीं किया जाए जहां उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो अन्यथा नहीं । जैसे  -भू-तत्व !
 5-अव्यय - 'तक ', 'साथ' आदि अव्यय सदा पृथक लिखे जाएं  ।जैसे -आपके साथ, वहां तक  ।
हिंदी में आह, ओह, ही, तो, जब, तब, कब यहाॅं, वहाॅं , श्री ,जी ,किंतु ,मगर ,लेकिन अथवा, यथा आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं  । कुछ अव्ययों के आगे विभक्ति चिन्ह भी आते हैं  ।जैसे अब से,  ,तब से, यहाॅं से आदि। नियम के अनुसार  अव्यय सदा  पृथक लिखे जाने चाहिए  ।
समस्त पदों में प्रति ,मात्र ,यथा , आदि  पृथक नहीं लिखे जाएंगे  । जैसे - प्रतिदिन, प्रतिशत मानवमात्र , निमित्तमात्र ,यथासंभव अर्थात समास होने पर समस्त पद एक माना जाता है उसे अलग ना लिखकर एक साथ ही लिखा जाता है।
श्रुति मूलक य, व जहां श्रुति मूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है वहां ना किया जाए अर्थात किए - किये, हुआ- हुवा ,नई- नयी  आदि में से पहले रूप का ही प्रयोग किया जाए ! यह नियम क्रिया विशेषण अव्यय आदि सभी रूपों में लागू है ।जैसे -दिखाए, गए , लिए ,नई दिल्ली ,पुस्तक लिए हुए ,
         जहां य श्रुति मूलक व्याकरणिक परिवर्तन ना होकर शब्द का ही मूल तत्व हो, वहां वैकल्पिक श्रुति मूलक स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है जैसे स्थायी,
 अव्ययीभाव ,दायित्व आदि
अनुस्वार या अनुनासिकता 
संयुक्त व्यंजन के रूप में जहां पंचमाक्षर के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता  तथा मुद्रण /लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का प्रयोग करना चाहिए - जैसे गंगा, चंचल ,ठंडा ,संध्या आदि
 मे  पंचमाक्षर के बाद उसी वर्ग का वर्ण आगे आता है अतः पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग होगा । यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई अन्य वर्ण आए अथवा वही पंचमाक्षर दोबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा जैसे अन्य , सम्मेलन, सम्मति ,उन्मुख आदि ।
    चंद्रबिंदु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की गुंजाइश रहती है जैसे हंस: हॅंस अंगना : अॅंगना आदि में  ।अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए ।
विदेशी ध्वनियां अरबी -फारसी  या अंग्रेजी मूलक शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं या जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है ,जैसे कलम, किला दाग आदि । पर जहां उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग हो तथा उच्चारण में भेद बताना आवश्यक हो वहां उसके नीचे नुकता लगाया जाए , जैसे खाना  - ख़ाना ,राज - राज़, फन- फ़न आदि ।
हिंदी में विदेशी भाषाओं से शब्द ग्रहण करने और उनके लिप्यंतरण के संबंध में अगस्त - सितंबर 1962 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की संगोष्ठी में कहा गया है कि अंग्रेजी शब्द का देवनागरी लिप्यंतरण इतना क्लिष्ट नहीं होना चाहिए कि उसके लिए वर्तमान देवनागरी वर्णो अनेक नए संकेत चिन्ह लगाने पडे़  । अंग्रेजी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मानक अंग्रेजी उच्चारण के अधिक से अधिक निकट होना चाहिए इसमें भारतीय शिक्षित समाज में प्रचलित उच्चारण संबंधी थोड़े बहुत परिवर्तन किए जा सकते हैं । अन्य भाषाओं के शब्दों के संबंध में भी यही नियम लागू होना चाहिए।       हिंदी में कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके दो-दो रूप प्रचलित हैं दोनों रूपों की एक सी मान्यता है  ।उदाहरण के लिए  गर्दन -गरदन, गर्मी -गरमी , बरफ-  बर्फ , बिलकुल- बिल्कुल ,कुरसी-  कुर्सी आदि। 
हल् चिन्ह - संस्कृत मूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृत रूप ही रखा जाए ,परंतु जिन शब्दों के प्रयोग में हिंदी में हल् चिन्ह लुप्त हो चुका है उनमें उसको फिर से लगाने का प्रयत्न न किया जाए  ।जैसे  - महान् विद्वान् आदि 
स्वन परिवर्तन -संस्कृत मूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों का त्यों ग्रहण किया जाए अतः ब्रह्मा को ब्रम्हा, चिह्न को चिन्ह उॠण को उरिण में बदलना उचित नहीं होगा ।
 विसर्ग - संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है वे यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हो तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए जैसे दुःखानुभूति में  ।यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग  का  लोप हो चुका हो तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम  चल जाएगा जैसे दुख - सुख के साथी। 
'ऐ' , 'औ' का प्रयोग - हिंदी में ऐ की मात्रा और औ की मात्रा का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है पहले प्रकार की ध्वनियां ' है ' , 'और 'आदि में हैं तथा दूसरे प्रकार की गवैया,  कौवा आदि में । इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए  'ऐ'  ,  तथा 'औ' के मात्रा चिह्नो का  प्रयोग किया जाए  ।गवय्या कव्वा  आदि संशोधनों की आवश्यकता नहीं है।
पूर्वकालिक प्रत्यय -पूर्वकालिक प्रत्यय 'कर'  क्रिया  से मिलाकर लिखा जाए  ।जैसे खा-पीकर ,रो- रोकर ,मिलाकर आदि।
अन्य नियम  -शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा। 
फुलस्टॉप को छोड़कर शेष विराम आदि चिन्ह वही ग्रहण कर लिए जाएं जो अंग्रेजी में प्रचलित है यथा - (।,_, ; , ? , =  )  विसर्ग  के चिन्ह को ही कोलन का चिन्ह मान लिया जाए।
पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई  ( । )का प्रयोग किया जाए

बोध प्रश्न-
1-भाषा की परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा भाषा के स्वरूप की विवेचना कीजिए ।
2-लिपि से आप क्या समझते हैं लिपि का महत्व बताइए ।
3-देवनागरी लिपि में वर्णो के मानक रूप को स्पष्ट कीजिए ।
4-वर्तनी से संबंधित सामान्य नियमों का उल्लेख कीजिए ।






Comments

Popular posts from this blog

शिक्षा में समावेशन प्रणाली और विद्यालय प्रबंधन समिति की भूमिका

सफलता की कुंजी आशा और विश्वास

कक्षा शिक्षण को प्रभावी बनाने की तकनीक झटका तकनीक